नवरात्र की नौ देवियां
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नवरात्र की नौ देवियां
नवरात्र पर्व के दिनों में देवी मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. आइए क्रमानुसार हर दिन के विषय में जानें:
पहले दिन: शैलपुत्री
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नवरात्र पर्व के प्रथम दिन को शैलपुत्री नामक देवी की आराधना की जाती है. पुराणों में यह कथा प्रसिद्ध है कि हिमालय के तप से प्रसन्न होकर आद्या शक्ति उनके यहां पुत्री के रूप में अवतरित हुई और इनके पूजन के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है.
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दूसरे दिन: ब्रह्मचारिणी
भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती की कठिन तपस्या से तीनों लोक उनके समक्ष नतमस्तक हो गए. देवी का यह रूप तपस्या के तेज से ज्योतिर्मय है. इनके दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला तथा बाएं में कमंडल है.
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तीसरे दिन: चंद्रघंटा
यह देवी का उग्र रूप है. इनके घंटे की ध्वनि सुनकर विनाशकारी शक्तियां तत्काल पलायन कर जाती हैं. व्याघ्र पर विराजमान और अनेक अस्त्रों से सुसज्जित मां चंद्रघंटा भक्त की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहती हैं.
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चौथे दिन: कूष्मांडा
नवरात्र पर्व के चौथे दिन भगवती के इस अति विशिष्ट स्वरूप की आराधना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इनकी हंसी से ही ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ था. अष्टभुजी माता कूष्मांडा के हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, अमृत-कलश, चक्र तथा गदा है. इनके आठवें हाथ में मनोवांछित फल देने वाली जपमाला है.
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पांचवे दिन: स्कंदमाता
नवरात्र पर्व की पंचमी तिथि को भगवती के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है. देवी के एक पुत्र कुमार कार्तिकेय (स्कंद) हैं, जिन्हें देवासुर-संग्राम में देवताओं का सेनापति बनाया गया था. इस रूप में देवी अपने पुत्र स्कंद को गोद में लिए बैठी होती हैं. स्कंदमाता अपने भक्तों को शौर्य प्रदान करती हैं.
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छठे दिन: कात्यायनी
कात्यायन ऋषि की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती उनके यहां पुत्री के रूप में प्रकट हुई और कात्यायनी कहलाई. कात्यायनी का अवतरण महिषासुर वध के लिए हुआ था. यह देवी अमोघ फलदायिनी हैं. भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने देवी कात्यायनी की आराधना की थी. जिन लडकियों की शादी न हो रही हो या उसमें बाधा आ रही हो, वे कात्यायनी माता की उपासना करें.
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सातवें दिन: कालरात्रि
नवरात्र पर्वके सातवें दिन सप्तमी को कालरात्रि की आराधना का विधान है. यह भगवती का विकराल रूप है. गर्दभ (गदहे) पर आरूढ़ यह देवी अपने हाथों में लोहे का कांटा तथा खड्ग (कटार) भी लिए हुए हैं. इनके भयानक स्वरूप को देखकर विध्वंसक शक्तियां पलायन कर जाती हैं.
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आठवें दिन: महागौरी
नवरात्र पर्व की अष्टमी को महागौरी की आराधना का विधान है. यह भगवती का सौम्य रूप है. यह चतुर्भुजी माता वृषभ पर विराजमान हैं. इनके दो हाथों में त्रिशूल और डमरू है. अन्य दो हाथों द्वारा वर और अभय दान प्रदान कर रही हैं. भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए भवानी ने अति कठोर तपस्या की, तब उनका रंग काला पड गया था. तब शिव जी ने गंगाजल द्वारा इनका अभिषेक किया तो यह गौरवर्ण की हो गई. इसीलिए इन्हें गौरी कहा जाता है.
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नौवे दिन : सिद्धिदात्री
नवरात्र पर्व (Navratri Festival) के अंतिम दिन नवमी को भगवती के सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है. इनकी अनुकंपा से ही समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं. अन्य देवी-देवता भी मनोवांछित सिद्धियों की प्राप्ति की कामना से इनकी आराधना करते हैं. मां सिद्धिदात्री चतुर्भुजी हैं. अपनी चारों भुजाओं में वे शंख, चक्र, गदा और पद्म (कमल) धारण किए हुए हैं. कुछ धर्मग्रंथों में इनका वाहन सिंह बताया गया है, परंतु माता अपने लोक प्रचलित रूप में कमल पर बैठी (पद्मासना) दिखाई देती हैं. सिद्धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है.
श्री राम का ऋषि शरभंग के आश्रम मेँ आगमन ( प्रेरणादायक प्रसंग ) . . . .जब श्री राम, सीता जी तथा लक्ष्मण जी सहित अपने वनवास काल मेँ ऋषि शरभंग के आश्रम मेँ पहुँचे तो शरभंग ऋषिका समय पृथ्वी पर समाप्त हो चुका था और उन्हेँ लेने देवराज इन्द्र अपने विमान मेँ बैठ आ गये थे ।देवराज इन्द्र अपने विमान से उतरकर ऋषि की कुटिया मेँ गये । उन्होँने ऋषि शरभंग को प्रणाम किया था तथा ऋषिशरभंग ने देवराज इन्द्र का उचित आदर सत्कार किया ।तब देवराज इन्द्र बोले- हे मुनि श्रेष्ठ हम आपको सदा के लिए अपने लोक ले जाने आये है ।इस पर ऋषि शरभंग बोले- हे देवराज ! सदा के लिए जाना तो कोई बड़ी बात नहीँ, लेकिन हम उसके पक्ष मेँ नहीँ । जब हमारी इच्छा होगी, हम स्वयं जाएँगे ।इन्द्र बोले- क्योँ मुनिराज ! हम स्वयं लेने आये है, ये सम्मान तो किसी विरले को ही मिलता है ।ऋषि बोले- परन्तु इससे प्राकृति के नियमोँ का विरोध होता है । हे देवराज ! मानवी देह मेँ किसी जीव का किसी दूसरे लोक मेँ जाना प्राकृति विरुध है । फिर भी अपनी तपस्या के बल पर यदि कोई प्राकृति पर विजय पा भीले, तो भी अकारण ही उसे अपने तपोबल का प्रदर्शन नहीँ करना चाहिए । इससे उसके अन्दर दंभ उत्पन्न होता है औरजिससे उस लोक मेँ उसका शीघ्र पतन हो जाता है । इसलिए हम अपनी इच्छा से ही अपनी देह का त्याग करके जायेँगे ।इन्द्र बोले- उसका समय भी आ गया है मुनि श्रेष्ठ ।ऋषि बोले- हम जानते है, किन्तु इस समय हमारे आश्रम मेँ एक विशेष आतिथि का आगमन हो चुका है तथा उनका आदर सत्कार किए बिना हमारा जाना उचित नहीँ होगा ।तब इन्द्र बोले- जैसे आपकी इच्छा मुनि श्रेष्ठ ।फिर देवराज इन्द्र, मुनि शरभंग को प्रणाम करके अपने विमान मेँ बैठकर अपने लोक चले गये ।इसके बाद श्री राम सीता जी तथा लक्ष्मण जी सहित मुनि के पास आये और मुनि के चरणोँ मेँ प्रणाम किया ।तब ऋषि शरभंग बोले- आ गये राम ! तुम्हारा स्वागत है, मर्हिष अत्री ने तुमसे सत्य कहा था, हम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे थे । हमारा समय पृथ्वी पर समाप्त हो चुका है, इसलिए देवराज हमे सदैव के लिए अपने लोक ले जाने आये थे ।श्री राम बोले- मैँने आपका वार्तालाप सुना है मुनीश्वर । देवताओँ के राजा इन्द्र के निमंत्रण को ठुकरा करआपने ये सिद्ध कर दिया है कि यदि मानव पूर्ण कर्मयोगी और स्वार्थ रहित हो जाये तो उसका स्थान देवताओँ से भी ऊँचा हो जाता है । मानव यदि अपना धर्म और मानवीय कर्तव्य पूरा करे तो उसे देवताओँ के पीछे भटकने की कोईआवश्यकता नहीँ रहती, देवता स्वयं उसके पीछे हाथ बांधे फिरते है ।ऋषि शरभंग बोले- इस संसार मेँ स्वार्थ से रहित कौन है ? हमेँ भी स्वार्थ था, हम दिव्य दृष्टि से देख रहेँ थे कि तुम मर्हिष अत्रि के आश्रम से होते हुए हमारे पास आ रहे थे । तुम्हारे दर्शन की लालसा मेँ हमनेदेवराज इन्द्र के निमंत्रण को तुच्छ समझा । आज तुम्हारे दर्शन पाकर हमारे कई जन्मोँ के पुण्य सुफल हो गये पुरुषोत्तम ।फिर मुनि बोले- हे राम ! जिस प्रकार सद्गृहस्त के द्वार पर यदि कोई साधु आ जाये तो उसे कुछ दान देना सद्गृहस्त का धर्म होता है, ठीक इसी प्रकार जब किसी साधु के द्वार पर कोई सद्गृहस्त आ जाये तो उसे आर्शीवाद तथा आत्म ज्ञान की शिक्षा देना साधु का कर्तव्य हो जाता है, तुम तो ज्ञान के भण्डार हो राम, इसलिए हम तुमको क्या शिक्षा देँगे । अपने तपोबल से हमने कुछ दिव्य लोकोँ कि सिद्धियाँ अर्जित की है, आज देह त्याग से पूर्व हम वो सारे लोक तुम्हे प्रदान कर देना चाहते है । इन्हेँ स्वीकार करोँ राम ।तब श्री राम बोले- महामुनि ! मैँ आपके इस अनुग्रह का सदैव ऋणि रहूँगा । परन्तु मेरे लिए आपके दिए इन दिव्य लोकोँ को ग्रहण करना उचित नहीँ होगा ।ऋषि शरभंग बोले- ऐसे क्योँ कह रहे हो राम ।श्री राम बोले- क्योँकि मैँ समझता हूँ कि जो लोग किसी साधु महात्मा के द्वार पर उनके तपोबल से कमाई हुई शक्ति के सहारे अपने दुःख मिटाने या महात्मा के पास कोई सम्पत्ति माँगने के लिए जाते है, वो उस लज्जाहीन चोर की भाँति है, जो दूसरे की कमाई पर आँख रखता है । यदि स्वाभिमानी पुरुष है तो उसे अपने परिश्रम से कमाईकरनी चाहिए । मुझे केवल यही आर्शीवाद दीजिए कि आपकी भाँति मैँ भी अपने ही कर्मोँ के बल पर वो शक्ति, वो ज्ञान, वो निःस्वार्थ भाव प्राप्त करूँ, जो मनुष्य को देवताओँ से भी ऊँचा उठाता है ।इस पर मुनि बोले- अति सुन्दर राम, तुमने अपनी मर्यादा के अनुकुल वचन कहे है । तुम अपने कर्म तथा पराक्रम के द्वारा मानव इतिहास मेँ आर्दश स्थापित कर सकोँगे । ऐसा आर्शीवाद देकर ऋषि शरभंग अपने मानव शरीर को योग अग्नि द्वारा भस्म कर दिव्य लोक चले गये ।
जीवन में उपयोगी श्लोक
जीवन में उपयोगी श्लोक
👉प्रभात श्लोकं ऐसे मंत्र जिनका हम जीवन में लाभ ले सके ।। पं विकास दीप शर्मा मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी ।।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले स्थिता गौरी प्रभाते करदर्शनम् ॥
👉प्रभात भूमि श्लोकं
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं, पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
👉सूर्योदय श्लोकं
ब्रह्मस्वरूपमुदये मध्याह्नेतु महेश्वरम् ।
साहं ध्यायेत्सदा विष्णुं त्रिमूर्तिञ्च दिवाकरम् ॥
👉स्नान श्लोकं
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
👉तिलक धारण श्लोकं
श्रीकरं च पवित्रं च शोक निवारणम् ।
लोके वशीकरं पुंसां भस्मं त्र्यैलोक्य पावनम् ॥
👉भोजन पूर्व श्लोकं
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणाहुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म कर्म समाधिनः ॥
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देह-माश्रितः ।
प्राणापान समायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ॥
👉भोजनानन्तर श्लोकं
अगस्त्यं वैनतेयं च शमीं च बडबालनम् ।
आहार परिणामार्थं स्मरामि च वृकोदरम् ॥
👉सन्ध्या दीप दर्शन श्लोकं
दीपं ज्योति परब्रह्म दीपं सर्वतमोपहम् ।
दीपेन साध्यते सर्वं सन्ध्या दीपं नमोஉस्तुते ॥
👉सूति वखते बोलता श्लोकं
रामं स्कन्धं हनुमन्तं वैनतेयं वृकोदरम् ।
शयने यः स्मरेन्नित्यम् दुस्वप्न-स्तस्यनश्यति ॥
👉कार्य प्रारम्भ श्लोकं
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
👉गायत्रि मन्त्रं
ॐ भूर्भुवः स्वः॒ । तत्स॑वि॒तुर्वरे॓ण्यं॒ ।
भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि । धियो॒ यो नः॑ प्रचोदया॓त् ॥
👉हनुमान श्लोक
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्टम् ।
वातात्मजं वानरयूध मुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि ॥
बुद्धिर्बलं यशोधैर्यं निर्भयत्व-मरोगता ।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्-स्मरणाद्-भवेत् ॥
👉श्रीराम श्लोक
श्री राम राम रामेती रमे रामे मनोरमे
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने
👉गणेश श्लोक
शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णम् चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ॥
अगजानन पद्मार्कं गजानन महर्निशम् ।
अनेकदन्तं भक्ताना-मेकदन्त-मुपास्महे ॥
👉शिव श्लोक
त्र्यं॑बकं यजामहे सुग॒न्धिं पु॑ष्टि॒वर्ध॑नम् ।
उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान्-मृत्यो॑र्-मुक्षीय॒ माஉमृता॓त् ॥
👉गुरु श्लोकं
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
👉सरस्वती श्लोकं
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी ।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता ।
या वीणा वरदण्ड मण्डित करा, या श्वेत पद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत शङ्कर प्रभृतिभिर्-देवैः सदा पूजिता ।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा ।
👉लक्ष्मी श्लोकं
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राज तनयां श्रीरङ्ग धामेश्वरीम् ।
दासीभूत समस्त देव वनितां लोकैक दीपाङ्कुराम् ।
श्रीमन्मन्ध कटाक्ष लब्ध विभव ब्रह्मेन्द्र गङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्यकुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥
👉देवी श्लोकं
सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोस्तुते ॥
👉कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् ।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ॥
👉शान्ति मन्त्रं
असतोमा सद्गमया ।
तमसोमा ज्योतिर्गमया ।
मृत्योर्मा अमृतङ्गमया ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
👉सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःख भाग्भवेत् ॥
ॐ स॒ह ना॑ववतु । स॒ नौ॑ भुनक्तु । स॒ह वी॒र्यं॑ करवावहै ।
ते॒ज॒स्विना॒वधी॑तमस्तु॒ मा वि॑द्विषा॒वहै॓ ॥
ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥
ऊँ नमः शिवाय ।।
जय श्री राम ।।
जय परशुराम ।।
नमस्कार व प्रणाम
त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी
हे ईश्वर हे परमेश्वर – – – –
शंख
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🙏 जय श्री कृष्णा 🙏
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शंख का नाम लेते ही मन में पूजा – और भक्ति
की भावना आ जाती है …… !
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आइये जाने शंख का स्वास्थय में, धर्म में, ज्योतिष
में उपयोग ~
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शंख का स्वस्थ्य में महत्व : ~~
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१ : ~ शंख की आकृति और पृथ्वी की संरचना समान है नासा के अनुसार – शंख बजाने से खगोलीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है जो जीवाणु का नाश कर लोगो को ऊर्जा व् शक्ति का संचार करता है …… !
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२ : ~ शंख में १००% कैल्शियम है इसमें रात
को पानी भर के पीने से कैल्शियम की पूर्ति
होती है …… !
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३ : ~ शंख बजाने से योग की तीन क्रियाएं एक साथ होती है – कुम्भक, रेचक, प्राणायाम …… !
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४ : ~ शंख बजाने से हृदयाघात, रक्तचाप की अनियमितता, दमा, मंदाग्नि में लाभ होता है …… !
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५ : ~ शंख बजाने से फेफड़े पुष्ट होते है …… !
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६ : ~ शंख में पानी रख कर पीने से मनोरोगी को लाभ होता है उत्तेजना काम होती है …… !
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७ : ~ शंख की ध्वनि से दिमाग व् स्नायु तंत्र सक्रिय
रहता है …… !
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शंख का धार्मिक महत्व : ~~
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८ : ~ दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी स्वरुप कहा जाता है इसके बिना लक्ष्मी जी की आराधना पूरी नहीं मानी
जाती है …… !
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९ : ~ समुन्द्र मंथन के दौरान १४ रत्नो में से ये एक रत्न है, सुख – सौभाग्य की वृद्धि के लिए इसे अपने घर में स्थापित करे …… !
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१० : ~ शंख में दूध भर कर रुद्राभिषेक करने से समस्त पापो का नाश होता है …… !
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११ : ~ घर में शंख बजाने से नकारात्मक ऊर्जा का व् अतृप्त आत्माओ का वास नहीं होता …… !
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१२ : ~ दक्षिणावर्ती शंख से पितरो का तर्पण करने से पितरो की शांति होती है …… !
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१३ : ~ शंख से स्फटिक के श्री यन्त्र अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है …… !
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शंख का ज्योतिष में महत्व : ~~
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१४ : ~ सोमवार को शंख में दूध भर कर शिव जी को चढाने से चन्द्रमा ठीक होता है …… !
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१५ : ~ मंगलवार को शंख बजा कर सुन्दर काण्ड पढ़ने से मंगल का कुप्रभाव काम होता है …… !
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१६ : ~ शंख में चावल भर के रखे और लाल कपडे में लपेट कर तिजोरी में रखें माँ अन्नपूर्णा की कृपा बानी रहती है …… !
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१७ : ~ बुधवार को शालिग्राम जी को शंख में जल व तुलसा जी डाल कर अभिषेक करने से बुध ग्रह ठीक होता है …… !
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१८ : ~ शंख को केसर से तिलक कर पूजा करने से
भगवन विष्णु व् गुरु की प्रसन्ता मिलती है …… !
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१९ : ~ शंख सफ़ेद कपड़े में रखने से शुक्र ग्रह बलवान होता है …… !
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२० : ~ शंख में जल ड़ाल कर सूर्ये देव को अर्घ्य देने से सूर्य देव प्रस्सन होते है …… !
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२१ : ~ शंख की पूजा करने से ऐश्वर्ये प्राप्त होता है …… !!!
राधे राधे 🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚🐚
बाबा फरीद
वेख फरीदा मिट्टी खुल्ली (कबर),
मिट्टी उत्ते मिट्टी डुली (लाश);
मिट्टी हस्से मिट्टी रोवे (इंसान),
अंत मिट्टी दा मिट्टी होवे (जिस्म);
ना कर बन्दया मेरी मेरी,
ना आये तेरी ना आये मेरी;
चार दिना दा मेला दुनिया,
फ़िर मिट्टी दी बन गयी ढेरी;
ना कर एत्थे हेरा फेरी,
मिट्टी नाल ना धोखा कर तू,
तू वी मिट्टी ओ वी मिट्टी;
जात पात दी गल ना कर तू,
जात वी मिट्टी पात वी मिट्टी,
जात सिर्फ खुदा दी उच्ची,
बाकी सब कुछ मिट्टी मिट्टी।
– बाबा फरीद.
निरोगी काया अनमोल रत्न
निरोगी काया अनमोल रत्न
🌷लौकी के जूस के फायदे 🌷
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लौकी हमारे शरीर के कई रोगों को दूर करने में सहायक होती है। इसका उपयोग रोगियों के लिए सलाद, रस निकालकर या सब्जी के रूप में लंबे समय से किया जाता रहा है। लौकी को कच्चा भी खाया जाता है। यह पेट साफ करने में भी बहुत ही फायदेमंद होता है साथ ही बॉडी को हेल्दी और टॉक्सिक फ्री भी बनाती है।लौकी से सेहत को होने वाले फायदे
🌷गैस और कब्ज
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एसिडीटी, कब्ज, पेट की बीमारियों एवं अल्सर में लौकी का रस फायदेमंद होता है। खाने के बाद अगर पेट में किसी प्रकार की कोई परेशानी महसूस हो रही हो तो लौकी का जूस पिएं।
🐾खांसी
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खांसी, टीबी, सीने में जलन आदि में भी लौकी बहुत उपयोगी होतीहै।
❤हार्ट डिसीज
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खाने के बाद एक कप लौकी के रस में थोड़ी-सी काली मिर्च और पुदीना डालकर पीने से हार्ट डिसीज रोग में आराम मिलता है।
🌻किडनी रोग
🍀🍀🍀🍀
लौकी किडनी के रोगों में बहुत उपयोगी है और इससे मूत्र खुलकर आता है।
🌻कोलेस्ट्रॉल
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लौकी में मिनरल्स अच्छी मात्रा में मिलते हैं। लौकी के बीज का तेल कोलेस्ट्रॉल को कम करता है तथा हृदय को शांत रखता है। यह ब्लड की नाडिय़ों को भी स्वस्थ बनाता है।
🌿कब्ज और पीलिया
🌷🌷🌷🌷🌷
लौकी का उपयोग आंतों की कमजोरी,कब्ज, पीलिया, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिसीज, डायबिटीज, शरीर में जलन या मानसिक उत्तेजना आदि में बहुत उपयोगी है।
🌷डायरिया
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अगर डायरिया के मरीज को केवल लौकी का जूस हल्के नमक और चीनी के साथ मिलाकर पिलाया जाए तो यह नेचुरली हेल्दी जूस बन जाताहै।
🌷मिर्गी
🌻🌻🌻
लौकी का रस मिर्गी में भी फायदेमंद है।
🌷हैजा
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हैजा होने पर 25 मिली लौकी के रस में आधा नींबू का रस मिलाकर धीरे-धीरे पिएं। इससे यूरिन बहुत आता है और लाभ होताहै।
🌻लौकी का जूस बनाने की विधि
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सबसे पहले लौकी को धो लें फिर उसे कद्दूकस कर लें। कद्दूकस की हुई लौकी में तुलसी के सात पत्ते और पुदीने की पांच पत्तियां डाल कर मिक्सर में पीस लें। रस की मात्रा कम से कम 150 ग्राम होनी चाहिए। अब इस रस में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर तीन चार पिसी काली मिर्च और थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर पिएं।
🌷रस को पीने की विधि-
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यह रस किसी भी दिल के मरीज को दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और शाम को खाने के बाद पिलाना चाहिए। शुरूआत के दिनों में रस कुछ कम मात्रा में लें और जैसे ही वह अच्छे से पचने लगे इसकी मात्रा बढ़ा दें। बाकि अन्य मरीज सिर्फ सुबह ही पिए.
🔴विशेष-
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लौकी का रस पेट के विकारों को मल के द्वारा बाहर निकाल देता है। जिसके कारण शुरूआत में पेट में गड़गड़ाहट और खलबली मच सकती है, इससे घबराएं नहीं कुछ समय बाद यह अपने आप ठीक हो जाएगा। इस रस को पीने के साथ मरीज का अपनी पहले से चल रही दवाईयों को भी चालू रखना चाहिये।
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जीवन में उपयोगी श्लोक
जीवन में उपयोगी श्लोक
👉प्रभात श्लोकं ऐसे मंत्र जिनका हम जीवन में लाभ ले सके ।। पं विकास दीप शर्मा मंशापूर्ण ज्योतिष शिवपुरी ।।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।
करमूले स्थिता गौरी प्रभाते करदर्शनम् ॥
👉प्रभात भूमि श्लोकं
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं, पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
👉सूर्योदय श्लोकं
ब्रह्मस्वरूपमुदये मध्याह्नेतु महेश्वरम् ।
साहं ध्यायेत्सदा विष्णुं त्रिमूर्तिञ्च दिवाकरम् ॥
👉स्नान श्लोकं
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
👉तिलक धारण श्लोकं
श्रीकरं च पवित्रं च शोक निवारणम् ।
लोके वशीकरं पुंसां भस्मं त्र्यैलोक्य पावनम् ॥
👉भोजन पूर्व श्लोकं
ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणाहुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्म कर्म समाधिनः ॥
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देह-माश्रितः ।
प्राणापान समायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ॥
👉भोजनानन्तर श्लोकं
अगस्त्यं वैनतेयं च शमीं च बडबालनम् ।
आहार परिणामार्थं स्मरामि च वृकोदरम् ॥
👉सन्ध्या दीप दर्शन श्लोकं
दीपं ज्योति परब्रह्म दीपं सर्वतमोपहम् ।
दीपेन साध्यते सर्वं सन्ध्या दीपं नमोஉस्तुते ॥
👉सूति वखते बोलता श्लोकं
रामं स्कन्धं हनुमन्तं वैनतेयं वृकोदरम् ।
शयने यः स्मरेन्नित्यम् दुस्वप्न-स्तस्यनश्यति ॥
👉कार्य प्रारम्भ श्लोकं
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
👉गायत्रि मन्त्रं
ॐ भूर्भुवः स्वः॒ । तत्स॑वि॒तुर्वरे॓ण्यं॒ ।
भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि । धियो॒ यो नः॑ प्रचोदया॓त् ॥
👉हनुमान श्लोक
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्टम् ।
वातात्मजं वानरयूध मुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि ॥
बुद्धिर्बलं यशोधैर्यं निर्भयत्व-मरोगता ।
अजाड्यं वाक्पटुत्वं च हनुमत्-स्मरणाद्-भवेत् ॥
👉श्रीराम श्लोक
श्री राम राम रामेती रमे रामे मनोरमे
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने
👉गणेश श्लोक
शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णम् चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ॥
अगजानन पद्मार्कं गजानन महर्निशम् ।
अनेकदन्तं भक्ताना-मेकदन्त-मुपास्महे ॥
👉शिव श्लोक
त्र्यं॑बकं यजामहे सुग॒न्धिं पु॑ष्टि॒वर्ध॑नम् ।
उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान्-मृत्यो॑र्-मुक्षीय॒ माஉमृता॓त् ॥
👉गुरु श्लोकं
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
👉सरस्वती श्लोकं
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी ।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता ।
या वीणा वरदण्ड मण्डित करा, या श्वेत पद्मासना ।
या ब्रह्माच्युत शङ्कर प्रभृतिभिर्-देवैः सदा पूजिता ।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा ।
👉लक्ष्मी श्लोकं
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्र राज तनयां श्रीरङ्ग धामेश्वरीम् ।
दासीभूत समस्त देव वनितां लोकैक दीपाङ्कुराम् ।
श्रीमन्मन्ध कटाक्ष लब्ध विभव ब्रह्मेन्द्र गङ्गाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्यकुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ॥
👉देवी श्लोकं
सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके देवि नारायणि नमोस्तुते ॥
👉कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् ।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ॥
👉शान्ति मन्त्रं
असतोमा सद्गमया ।
तमसोमा ज्योतिर्गमया ।
मृत्योर्मा अमृतङ्गमया ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
👉सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःख भाग्भवेत् ॥
ॐ स॒ह ना॑ववतु । स॒ नौ॑ भुनक्तु । स॒ह वी॒र्यं॑ करवावहै ।
ते॒ज॒स्विना॒वधी॑तमस्तु॒ मा वि॑द्विषा॒वहै॓ ॥
ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥
ऊँ नमः शिवाय ।।
जय श्री राम ।।
जय परशुराम ।।
नमस्कार व प्रणाम
त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी
हे ईश्वर हे परमेश्वर – – – –
गायत्री मंत्र कब ज़रूरी है
गायत्री मंत्र कब ज़रूरी है
☀सुबह उठते वक़्त 8 बार ❕✋✌👆❕अष्ट कर्मों को जीतने के लिए !!
🍚🍜 भोजन के समय 1 बार❕👆❕ अमृत समान भोजन प्राप्त होने के लिए !!
🚶 बाहर जाते समय 3 बार ❕✌👆❕समृद्धि सफलता और सिद्धि के लिए !!
👏 मन्दिर में 12 बार ❕👐✌❕
प्रभु के गुणों को याद करने के लिए !!
😢छींक आए तब गायत्री मंत्र उच्चारण ☝1 बार अमंगल दूर करने के लिए !!
सोते समय 🌙 7 बार ❕✋✌ ❕सात प्रकार के भय दूर करने के लिए !!
कृपया सभी बन्धुओं को प्रेषित करें 👏👏 !!!
🙏 पहला सुख निरोगी काया🙏
भक्ति के मोती
🙏☝∥ भक्ति के मोती ∥☝🙏
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श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय !
– श्री = निधि
– कृष्ण = आकर्षण तत्व
– गोविन्द = इन्द्रियों को वशीभुत करना गो-इन्द्रि, विन्द बन्द करना, वशीभूत
– हरे = दुःखों का हरण करने वाले
– मुरारे = समस्त बुराईयाँ- मुर (दैत्य)
– हे नाथ = मैं सेवक आप स्वामी
– नारायण = मैं जीव आप ईश्वर
– वासु = प्राण
– देवाय = रक्षक
“अर्थात : “हे आकर्षक तत्व मेरे प्रभो, इन्द्रियों को वशीभूत करो, दुःखों का हरण करो, समस्त बुराईयों का बध करो, मैं सेवक हूँ आप स्वामी, मैं जीव हूं आप ब्रह्म, प्रभो ! मेरे प्राणों के आप रक्षक हैं…
श्री कृष्ण शरणंमम्…🙏
श्री कृष्ण शरणंमम्…🙏
🙏🌄➖सूप्रभात➖🌄🙏
☕ हम सब का दिन शुभ हो..👍
🚩 🙏..जय श्री कृष्णा..🙏 🚩
गौतम बुद्ध के सुविचार
गौतम बुद्ध के सुविचार🌺
☝जो गुजर गया उसके बारे में मत सोचो और भविष्य के
सपने मत देखो केवल वर्तमान पे ध्यान केंद्रित करो ।
–🙏गौतम बुद्ध
☝आप पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं भी ऐसे व्यक्ति को खोज लें जो आपको आपसे ज्यादा प्यार करता हो, आप पाएंगे कि जितना प्यार आप खुद से कर सकते हैं उतना कोई आपसे नहीं कर सकता ।
–🙏 गौतम बुद्ध
☝स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन और विश्वास सबसे अच्छा संबंध। –🙏 गौतम बुद्ध
☝हमें हमारे अलावा कोई और नहीं बचा सकता, हमें
अपने रास्ते पे खुद चलना है। – 🙏गौतम बुद्ध
☝तीन चीज़ें ज्यादा देर तक नहीं छुपी रह सकतीं –
सूर्य, चन्द्रमा और सत्य
–🙏 गौतम बुद्ध
☝आपका मन ही सब कुछ है, आप जैसा सोचेंगे वैसा बन
जायेंगे ।
– 🙏गौतम बुद्ध
☝अपने शरीर को स्वस्थ रखना भी एक कर्तव्य है, अन्यथा आप अपनी मन और सोच को अच्छा और साफ़ नहीं रख पाएंगे ।
– 🙏गौतम बुद्ध
☝हम अपनी सोच से ही निर्मित होते हैं, जैसा सोचते
हैं वैसे ही बन जाते हैं। जब मन शुद्ध होता है तो खुशियाँ परछाई की तरह आपके साथ चलती हैं ।
–🙏गौतम बुद्ध
☝किसी परिवार को खुश, सुखी और स्वस्थ रखने के
लिए सबसे जरुरी है – अनुशासन और मन पर नियंत्रण।
अगर कोई व्यक्ति अपने मन पर नियंत्रण कर ले तो उसे
आत्मज्ञान का रास्ता मिल जाता है ।
– 🙏गौतम बुद्ध
☝क्रोध करना एक गर्म कोयले को दूसरे पे फैंकने के
समान है जो पहले आपका ही हाथ जलाएगा ।
–🙏गौतम बुद्ध
☝जिस तरह एक मोमबत्ती की लौ से हजारों मोमबत्तियों को जलाया जा सकता है फिर भी उसकी रौशनी कम नहीं होती उसी तरह एक दूसरे से
खुशियाँ बांटने से कभी खुशियाँ कम नहीं होतीं ।
–🙏गौतम बुद्ध
☝ इंसान के अंदर ही शांति का वास होता है, उसे बाहर
ना तलाशें ।
–🙏 गौतम बुद्ध
☝ आपको क्रोधित होने के लिए दंड नहीं दिया जायेगा, बल्कि आपका क्रोध खुद आपको दंड देगा ।
–🙏गौतम बुद्ध
☝ निष्क्रिय होना मृत्यु का एक छोटा रास्ता है, मेहनती होना अच्छे जीवन का रास्ता है, मूर्ख लोग निष्क्रिय होते हैं और बुद्धिमान लोग मेहनती ।
–🙏गौतम बुद्ध
☝हम जो बोलते हैं अपने शब्दों को देखभाल के चुनना
चाहिए कि सुनने वाले पे उसका क्या प्रभाव पड़ेगा,
अच्छा या बुरा ।
–🙏 गौतम बुद्ध
☝ आपको जो कुछ मिला है उस पर घमंड ना करो और
ना ही दूसरों से ईर्ष्या करो, घमंड और ईर्ष्या करनेवाले लोगों को कभी मन की शांति नहीं मिलती ।
–🙏 गौतम बुद्ध
☝ अपनी स्वयं की क्षमता से काम करो, दूसरों निर्भर मत रहो ।
–🙏 गौतम बुद्ध
☝ असल जीवन की सबसे बड़ी विफलता है हमारा
असत्यवादी होना ।
– 🙏 गौतम बुद्ध
Be a Buddha.
Be A Master.